छोटे मैरिज गार्डन को राहत देने एवं दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाले एसिड के क्रय-विक्रय में आ रही परेशानी को दूर किए जाने के लिए नियमों में संशोधन किया जाए: चेम्बर ऑफ कॉमर्स
ग्वालियर / छोटे मैरिज गार्डन को राहत देने एवं दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाले एसिड के क्रय-विक्रय में आ रही परेशानी को दूर किए जाने के लिए म.प्र. चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री द्बारा प्रदेश के मुख्यमंत्री- कमलनाथ, पूर्व केन्द्रीय मंत्री-श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया, विधि एवं विधायी कार्य मंत्री-श्री पी.सी. शर्मा, नगरीय विकास मंत्री- जयवर्द्घन सिंह, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री- तुलसीराम सिलावट, खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री- प्रद्युम्न सिंह तोमर एवं प्रमुख सचिव नगरीय विकास एवं लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को चेम्बर ने पत्र प्रेषित किये हैं|
चेम्बर द्बारा प्रेस को जारी विज्ञप्ति में अवगत कराया गया है कि भूमि विकास नियम-२०१२ में मैरिज गार्डन के लिए प्रावधान किया गया है कि कोई भी मैरिज गार्डन ०५ बीघा से कम जमीन पर संचालित नहीं होगा| इतने बड़े मैरिज गार्डन का खर्च सम्पन्न परिवार तो उठा सकते हैं, परन्तु निम्न व मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए यह बोझ उठा पाना संभव ही नहीं है क्योंकि उन्हें कम मेहमानों के लिए छोटे मैरिज गार्डन की जरूरत होती है और उसी हिसाब से बजट तय करते हैं|
चूंकि छोटे मैरिज गार्डन में कम लोग आते हैं तो वहां आने वाले वाहन भी कम होते हैं| इसके साथ ही छोटे मैरिज गार्डन में आने वाले वाहनों के प्रकार में अधिकतम दो पहिया वाहन होते हैं| क्योंकि छोटे मैरिज गार्डन में मध्यम वर्ग में भी अति मध्यम वर्ग के परिवार वहां से विवाह करते हैं | इसलिए बड़े मैरिज गार्डन में पार्किंग के स्पेस का जो प्रावधान है, वह छोटे मैरिज गार्डन की तुलना में कम प्रतिशत में होना चाहिए| छोटे मैरिज गार्डन को मान्यता देने में यह बाध्यता तो की जा सकती है कि वह ३०-४० फीट चौड़ी सड़क पर निर्मित हो लेकिन छोटे मैरिज गार्डन का प्रावधान ही खत्म कर देना यह प्रदेश के आम लोगों के लिए परेशानी पैदा करने वाला और कानून के पालन में बाधा उत्पन्न करने वाला प्रावधान है|
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कालांतर में जब यह मैरिज गार्डन नहीं थे तब लोग अपने घर के बाहर से या मौहल्ला/कॉलोनी के पार्क से विवाह करते थे| अब अगर इन छोटे मैरिज गार्डन को बंद किया जाता है तो अति मध्यम वर्ग व उससे नीचे के वर्ग को सड़कों पर विवाह कार्यक्रम करना पड़ेंगे जिससे यातायात पूर्णत: ठप्प हो जायेगा और यदि प्रशासन द्बारा कार्यवाही की गई तो वह शासन के प्रति लोगों की नाराजगी को बढाएगा|
चेम्बर ने मांग की है कि भूमि विकास नियम,२०१२ में आवश्यक संशोधन किया जाए और मैरिज गार्डन की परिभाषा तय की जाए, क्योंकि यदि भूमि विकास नियम-२०१२ को नहीं बदला गया, तो जिन परिवारों को २००-३०० मेहमानों के लिए जगह की आवश्यकता है, उन्हें भी बड़े मैरिज गार्डन बुक करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जबकि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसा करने की कतई इजाजत नहीं देती है| सरकार द्वारा ऐसा नहीं किए जाने पर मध्यम वर्गीय परिवारों द्वारा पुनः सड़क पर टेंट लगाकर शादियां की जाएँगी, जिससे प्रदेश के शहरों में यातायात संचालन की एक गंभीर समस्या उत्पन्न होगी|
वहीं मध्यप्रदेश विष (कब्जा और विक्रय) नियम, २०१४ की कंडिका-१४ के अनुसार इसमें शामिल १०१ तरह के एसिड/विष को एक लायसेंसधारी दूसरे लायसेंसधारी को विक्रय कर सकता है और आम जनता/व्यापारी/औद्योगिक इकाईयों को इसकी आवश्यकता पड़ती है तो उसके लिए उन्हें जिला प्रशासन से परमिट प्राप्त करना होगा| इस प्रचलित नियम का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि टॉयलेट क्लीनर, खाद्य सामग्री में आने वाला एसिड, मलेरिया आदि के बचाव में लगने वाला फिनायल| यह सब किसी को अगर घरेलू उपयोग के लिए चाहिए तो उसे परमिट प्राप्त करना होगा जो कि इस नियम की बड़ी विषमता है| जिससे कई व्यवहारिक कठिनाईयां आयेंगी|
पदाधिकारियों ने कहा है कि उक्त मध्यप्रदेश विष (कब्जा और विक्रय) नियम, २०१४ को अध्ययन करने से ऐसा प्रतीत होता है कि माननीय उच्चतम न्यायालय के वर्ष २०१३ में दिये गये निर्देश के बाद म.प्र. सरकार द्बारा जल्दबाजी में इस पर रायशुमारी किए बिना यह नियम मध्यप्रदेश की जनता पर थोप दिया है| जबकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी केवल घातक प्रकार के एसिड के विक्रय पर नियंत्रण की बात कही थी| लेकिन नियम बनाने वालों ने उसके अंदर संपूर्ण संबंधित एसिड/विष को जोड़ दिया है|
चेम्बर ने पत्र के माध्यम से मांग की है कि घातक प्रकार के दो एसिड नाइट्रिक एसिड एवं सल्फ्यूरिक एसिड को परमिट की श्रेणी में ही रखा जाये लेकिन शेष ९९ एसिड/विष जो कि दैनिक जीवन में सामान्यत: काम आते हैं और इनकी खरीदी-विक्रय के लिए केवल खरीददार का नाम, पता, फोटो आईडी प्राप्त कर, उसका लेखा रजिस्टर बनाने की बाध्यता के साथ लागू किया जाना चाहिए| इस एक्ट में शीघ्रातिशीघ्र परिवर्तन की आवश्यकता है|
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