प्रदेश के हित में नहीं है शिक्षा, स्वास्थ्य और जन कल्याण में पीपीपी माँडल : सीपीआईएम

भोपाल / प्रदेश के विकास और आगामी बजट की प्रक्रिया में राज्य सरकार को नौकरशाहों से चर्चा करने की बजाय प्रदेश के किसानों और किसान संगठनों, श्रमिकों और श्रमिक संगठनों से चर्चा करना चाहिए। प्रदेश के नागरिकों से चर्चा ही प्रदेश को प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ा सकती है। 
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने उक्त बयान जारी करते हुए कहा कि पिछले दिनों योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के साथ हुआ विमर्श संकट में फंसी प्रदेश की अर्थव्यवस्था को राहत देने की बजाय और संकट को विकराल करने वाला है। 
माकपा नेता ने कहा है कि जनसेवा की श्रेणी में आने वाले क्षेत्र जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और इस तरह के  बनियादी सुविधाओं वाले क्षेत्रों में पब्लिक पाईवेट पार्टनरशिप के आने से इनका मूल मकसद ही खतम हो जायेगा। मोंटेक सिंह ने भी माना है कि प्राईवेट सेक्टर का मकसद मुनाफा होता है। जाहिर सी बात है कि यदि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बजाय व्यवसाय में तबदील हो जायेंगे तो उनका मकसद जनता को बेहतर और शुलभ सेवाएं देने की बजाय मुनाफा कमाना हो जायेगा। जिसके परिणाम स्वरूप शिक्षा और स्वास्थ्य आम जनता की पहुंच से बाहर हो जायेगा। शिवराज सिंह चौहान की सरकार द्धारा झाबुआ और अलीराजपुर के जिला अस्पतालों के पीपीपी माँडल से चलाने के परिणाम भी स्वास्थ्य सेवाओं के महंगे होने के रूप में ही सामने आए हैं। 
जसविंदर सिंह ने कहा है कि इन क्षेत्रों में पीपीपी के रास्ते पर बढऩे से पहले राज्य सरकार को उन राज्यों का अध्य्यन करना चाहिए जिन राज्यों ने इन क्षेत्रों में पीपीपी माँडल अपनाया है और वहां शिक्षा और स्वास्थ्य आम जनता की पहुंच से बाहर हुआ है। माकपा के अनुसार एक दूसरा विकल्प भी है, जो केरल की वाम जनवादी मोर्चे की सरकार नेेे अपनाया है, जिसके बाद प्राईवेट स्कूलों के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वहां की स्वास्थ्य सुविधायें तो युरोप से भी बेहतर हैं। दिल्ली में भी शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार सरकार की पहल और निवेश पर हुआ है, पीपीपी माँडल अपना कर नहीं। प्रदेश की कमलनाथ सरकार को भी इस दूसरे विकल्प की अपनाना चाहिए। 


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