भोपाल । वित्तीय अराजकता के चलते बीते डेढ़ दशक में मध्यप्रदेश की आर्थिक हालात साल दर साल बिगड़ती चली गई , जिसकी वजह से आज प्रदेश पर दो लाख करोड़ से अधिक का कर्ज हो गया है। अब हालात यह है कि राज्य सरकार को हर साल सिर्फ कर्ज पर ब्याज के रुप में 14 हजार करोड़ का भुगतान करना पड़ रहा है। इसके बाद भी सरकार है कि लगभग हर माह औसतन करीब डेढ़ हजार करोड़ का कर्ज ले रही है। सरकारों द्वारा यह कर्ज तय पात्रता के बहाने लिया जाता है। अगर कर्ज लेने की यही रफ्तार कायम रही तो एक दिन सरकार के बार्षिक बजट की बड़ी राशि सिर्फ ब्याज के भुगतान में ही खर्च करने की स्थिति बन सकती है। खास बात यह है कि इस स्थिति के बाद भी सरकार कोइ सबक लेती नहीं दिख रही है। सरकार खर्च में कटौति करने को तैयार भी नजर नहीं आ रही है। प्रदेश की आर्थिक स्थिति की हालत कितनी गंभीर है इससे ही समझी जा सकती है कि लगतार कर्ज लेने के बाद भी सरकार को बीते दिसंबर माह में विभिन्न विभागों से कहना पड़ा कि वह आंवटित बजट में से 10 से 15 प्रतिशत की कटौती करें। यही नहीं सरकार ने दिसंबर में विस में पेश प्रथम अनुपूरक बजट में 23 हजार करोड़ से ज्यादा का प्रावधान किया था, लेकिन विभागों को सिर्फ 5 हजार करोड़ रुपए ही जारी किए गए। इसकी वजह से विभागों के कामों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
खरीदी पर पाबंदी
एक फरवरी को संसद में पेश आम बजट में मप्र को केंद्रीय करों से मिलने वाली हिस्सेदारी में 14,223 करोड़ की कटौती की गई है। वित्त विभाग का मानना है कि केंद्र सरकार जीएसटी से मप्र को मिलने वाली राशि और अन्य ग्रांट कम कर सकती है। राज्य सरकार का मानना है कि इस साल केन्द्र से करीब 20 हजार करोड़ कम मिल सकते हैं। इस संभावना के चलते राज्य सरकार ने विभागों को अंतिम दो माह के बजट में आवंटित कुल राशि में से बची हुई राशि का सिर्फ 10-10 प्रतिशत खर्च करने के निर्देश दिए थे। सरकार का मानना है कि इससे वह दो माह में करीब 25 हजार करोड़ रुपए बचा लेगी। आमतौर पर विभागों द्वारा राशि लैप्स होने के डर से फरवरी और मार्च में खरीदी पर जमकर बजट खर्च किया जाता है। यही वजह है कि राज्य सरकार मार्च अंत तक तक विभागों द्वारा की जाने वाली खरीदी पर पाबंदी लगाई जा चुकी है।
इस माह बंद हो जाएंगी सभी योजनाएं
चौदहवें वित्त आयोग का कार्यकाल इसी माह की 31 मार्च को पूरा हो रहा है , इसके साथ ही प्रदेश में संचालित सभी 2170 सरकारी योजनाएं बंद हो जाएंगी। इन सभी योजनाओं की वैधता 31 मार्च तक है। इसके बाद सरकार को नए सिरे से तय करना है कि इनमें से कौन सी योजनाएं बंद करना हैं और कौन सी नए रूप में चालू रखाना है। सरकार ने इनमें से बड़ी संख्या में अनुपयोगी योजनाओं को बंद करने की तैयारी कर ली है। योजनाओं को 31 मार्च के बाद चालू रखने के लिए कैबिनेट की मंजूरी लेनी होगी। यही वजह है कि सरकार ने योजनाओं का री-असेसमेंट और री-स्ट्रचरिंग करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की कमेटी बनाई है।
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